मत बिगाड़ो हमारे घरौंदे । आंडाल
- Madhav Hada

- Jul 26
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आंडाल की रचना नाच्चियार तिरुमोलि के दस पदों का भाव रूपांतर | बनास जन । जनवरी-अप्रैल, 2025 । सं पल्लव |

बारह आलावरों में से एक आंडाल (आठवीं सदी) दक्षिण भारत की सबसे अधिक लोकप्रिय संत-भक्त कवयित्री है। ‘आंडाल’ शब्द ‘आलवार’ अर्थात् वह जो शासन करता है का स्त्रीलिंग रूप है, जिसका अर्थ ‘वह जो शासन करती है’। कहते हैं कि भगवान् आंडाल के अधीन थे- वे उसकी इच्छा और रुचि का सम्मान करते थे। वे दक्षिण भारत में इतनी लोकप्रिय हैं कि मार्गशीर्ष माह में उनकी रचना तिरुप्पावै घर-घर में गाई जाती हैं। वे साक्षात् लक्ष्मी और भूमिपुत्री के रूप में विख्यात हैं। आलवार संप्रदाय में उन्हें ‘शूडिक् कोडुत नाच्चियार’ ‘आमुक्तमाल्यदा’ भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है वह देवी जिसकी पहनी हुई पुष्पमाला भगवान् को अर्पित की गई। वे वाटिका में पुष्पों के बीच मिली थी, इसीलिए उन्हें ‘कौदे’ या ‘गोदा’ भी कहा जाता है, जिसका अर्थ पुष्पों का गुच्छा है। आंडाल की रचनाएँ पति और प्रिय के रूप में भगवान् श्रीनारायण की कामना, उनसे विरह और संयोग की कामना पर आधारित हैं। उनकी रचनाओं के प्रेम और विरह की ऐंद्रिकता अपने चरम पर है। आंडाल ने अपने नगर श्रीविल्लिपुत्तूर को वृंदावन, वहाँ के देव वटपत्रशायी भगवान् श्रीनारायण को श्रीकृष्ण और अपने साथ अपनी सखियों को गोपियाँ मान लिया है। आंडाल की रचनाएँ रामानुजाचार्य (1017-1137 ई.) के विशिष्टाद्वैतवाद की सैद्धांतिकी का आधार हैं। आंडाल की तिरुप्पावै उनकी प्रिय रचनाओं में से थी। वे इसको डूबकर से गाते थे, इसलिए उनका नाम ‘तिरुप्पावैजियर्’ प्रसिद्ध हो गया, जिसका अर्थ तिरुप्पावै से प्रभावित संन्यासी है। रामानुज संप्रदाय में आंडाल की मान्यता बहुत है। विशिष्टाद्वैतवाद के विख्यात मनीषी आचार्य वेदांत देशिक (1268-1369 ई.) उनसे प्रभावित थे। उन्होंने आंडाल की स्तुति में गोदास्तुति नामक कृति की रचना की। दक्षिण में उनकी लोकप्रियता का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि विजयनगर के शासक कृष्णदेवराय (1471-1529 ई.) ने उनकी स्तुति में आमुक्त माल्यदा की रचना की। आंडाल की दो रचनाएँ तिरुप्पावै और नाच्चियार तिरुमोलि आलवारों की रचनाओं के विख्यात संचयन नालायिर दिव्य प्रबंधम् में सम्मिलित हैं।
नाच्चियार तिरुमोलि के दूसरे खंड “मत बिगाड़ो हमारे घरौंदे, भाव रूपांतर प्रस्तुत है। दूसरे खंड में बहुत मनोरम कल्पना है। गोप कन्याओं ने मिट्टी के घरौंदे बनाए हैं। नटखट श्रीकृष्ण इन घरौंदो को बिगाड़ने पर आमादा हैं। आंडाल और सखियाँ श्रीकृष्ण से अनुरोध कर रही हैं कि हमारे घरौंदे मत बिगाड़ो। एक पद में वे कहती हैं कि “दिन भर हमने बनाए घरौंदे / दुखने लगी है हमारी पीठ / अपनी आँखों से देखो इन्हें / महाप्रलय में वटपत्र पर शयन करने वाले / हे श्रीनारायण! / यह हमारा ही पाप है कि / हम नहीं हो पाईं आपकी कृपापात्र।”
आंडाल की रचनाओं का प्रस्तुत चयन मूल तमिल के हिंदी अनुवादों पर आधारित भावरूपांतर है। यहाँ आंडाल की रचनाओं के भावरूपांतर के लिए उपलब्ध हिंदी अनुवादों में से मुख्यत दो- पंडित श्रीनिवास राघवन के दिव्य प्रबंध, भाग-2 (हिंदी भवन, विश्वभारती, शांतिनिकेतन, 1982) और डॉ. ना. सुंदरम् के प्रकाशित शोधप्रबंध मीरां और आंडाल का तुलनात्मक अध्ययन के अनुवाद विषयक परिशिष्ट (हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, 1971) को आधार बनाया गया है। संपादक इन दोनों हिंदी अनुवादक विद्वानों के प्रति हृदय से कृतज्ञता ज्ञापित करता है।
मत बिगाड़ो हमारे घरौंदे
1.
हे सहस्रनाम श्रीनारायण!
यदि हम करें तुम्हारी पूजा
अपने होनेवाली सास के पुत्र के रूप में
तो क्या हो जाएगा
हमारे दुःखों का अंत?
फाल्गुन के मदनोत्सव में
सजाया है हमने वीथियों को
हे नटखट श्रीधर!
मत बिगाड़ो हमारे घरौंदे
2.
दिन भर हमने बनाए घरौंदे
दुखने लगी है हमारी पीठ
अपनी आँखों से देखो इन्हें
महाप्रलय में वटपत्र पर शयन करने वाले
हे श्रीनारायण!
यह हमारा ही पाप है कि
हम नहीं हो पाईं आपकी कृपापात्र
3.
हे अगाध समुद्र और उग्र सिंह सदृश!
हे मत्त गजेंद्र, संकट-मोचक!
मत सताओ हमें
चूड़ियोंवाले कोमल हाथों से हमने बनाए हैं
बारीक रेत के घरौंदे
सागर की धवल तरंगों पर
निवास करनेवाले हे प्रिय!
मत बिगाड़ो हमारे घरौंदे
4.
हे नील वर्ण नीरद श्रीकृष्ण!
तुम्हारे वचन और चेष्टाएँ
हमें करती हैं मुग्ध और विह्वल
क्या तुम्हारा मुख है वशीकरण मंत्र?
हम तुम्हें नहीं कहेंगी
कोई मन दुखाने वाली बात
तुम यह नहीं कह सकते कि
हम अच्छी नहीं हैं
हे अरुण तामरस[1] लोचनवाले श्रीकृष्ण!
मत बिगाड़ो हमारा घरौंदे
5.
हमने गलियों में बनाए हैं
रेत के सुंदर घर
घरों को तोड़ देने से
टूट जाएगा हमारा हृदय
फिर भी हम नहीं होंगी रुष्ट
हे चोर माधव!
क्यों आमादा हो
हमारे खलने के घर तोड़ने पर
कितने सुंदर हैं ये घर
क्या नहीं दिखता तुम्हे?
कौन तोड़ना चाहेगा इन घरों को?
6.
सेतु बाँधकर
लंका को नष्ट करने वाले
राक्षसों का संहार करने वाले हे योद्धा!
हम तो हैं अभी कन्याएँ
अभी विकसित नहीं हुए हैं हमारे स्तन
क्यों तोड़ रहे हो हमारे घरौंदे
हमें नहीं आतीं
तुम्हारी तरह प्रेम चेष्टाएँ
हमें मत सताओ
7.
हे तरंगायित समुद्रवर्ण श्रीनारायण!
तुम्हारी मीठी बातों का निहितार्थ
जानते हैं शृंगार मर्मज्ञ
हम हैं अबोध कन्याएँ
हम नहीं पता इनका गूढ़ार्थ
हमें व्यथित करके तुम्हे क्या मिलेगा?
हे समुद्र पर सेतु बाँधनेवाले प्रियतम!
तुम्हें अपनी पत्नियों की सौगंध
मत बिगाड़ो हमारे घरौंदे
8
सुदर्शनचक्रधारी, नीलसागरस्वरूप
हे ज्योतिपुंज श्रीनारायण!
हमारे बनाए घरौंदों को बिगाड़ने से
क्या मिलेगा तुम्हें?
कलश, सूप और बालू से खेलेनेवाली
हम गोप कन्याओं को
बार-बार छूकर मत सताओ
क्या तुम नहीं जानते
दुःखी होने पर
गुड़ भी लगता है कड़वा?
9.
हे गोविंद!
एक पैर से तुमने नाप लिया था
पृथ्वी और आकाश को
हमारे आँगन में आकर हँसते हुए
क्यों कर रहे हो मस्तियाँ?
क्यों बिगाड़ रहे हो हमारे घरौंदे?
हमारे साथ कर रहे हो गाढ़ालिंगन
क्या समझेंगे आस-पड़ोस के लोग?
10
सीता के अधरों का
रसपान करनेवाले हे भगवान्!
“मत बिगाड़ो हमारे घरौंदे”
यह कहनेवाली हम गोपकन्याओं की
तुतली वाणी में
वेदों में निपुण, अनुष्ठान के ज्ञाता
श्रीविल्लिपुत्तूर के श्रीविष्णुचित्त की पुत्री गोदा के रचित
इन गीतों का पाठ करने वाले
निर्दोष जाएँगे वैकुंठ
[1] कमल



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