पदमिनी : इतिहास और कथा-काव्य की जुगलबंदी
Padmini: Itihas aur Katha-Kavya ki Jugalabandi
भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, राष्टृपति निवास, शिमला- 171005
संस्करण 2023 , पृ. सं. 700, ISBN-10 : 9391277241, ISBN-13 : 978-93-82396-84-0, मूल्य : रु. 1395
परिचय । Introduction
पद्मिनी: इतिहास और कथा-काव्य की जुगलबंदी
पद्मिनी-रत्नसेन प्रकरण सदियों से लोक स्मृति में ‘मान्य सत्य’ की तरह रहा है। सोलहवीं से उन्नीसवीं सदी तक इस प्रकरण पर देश भाषाओं में निरंतर कथा-काव्य रचनाएँ होती रही हैं और ये अपने चरित्र और प्रकृति में परंपरा से कथा-आख्यान के साथ कुछ हद तक ‘इतिहास’ भी हैं। अज्ञात कवि कृत ‘गोरा-बादल कवित्त’ (1588 ई. से पूर्व), हेमरतन कृत ‘गोरा-बादल पदमिणी चउपई’ (1588 ई.), अज्ञात कवि कृत ‘पद्मिनीसमिओ’ (1616 ई.), जटमल नाहर कृत’ गोरा-बादल कथा’ (1623 ई.), लब्धोदय कृत ‘पद्मिनी चरित्र चौपई’ (1649 ई.), दयालदास कृत ‘राणारासो’ (1668-1681 ई), दलपति विजय कृत ‘खुम्माणरासो’ (1715-1733 ई.) और अज्ञात रचनाकार कृत ‘चित्तौड़-उदयपुर पाटनामा’ (प्रतिलिपि, 1870 ई.) इस परंपरा की अब तक उपलब्ध रचनाएँ हैं। पद्मिनी प्रकरण व्यापक चर्चा में तो रहा, लेकिन इसकी परख-पड़ताल में इस्लामी, फ़ारसी-अरबी स्रोतों की तुलना में इन रचनाओं का उपयोग नहीं के बराबर हुआ। अधिकांश आधुनिक इतिहासकारों ने इन देशज रचनाओं के बजाय अलाउद्दीन ख़लजी के समकालीन इस्लामी वृत्तांतों में अनुल्लेख के आधार पर देशज रचनाओं को मलिक मुहम्मद जायसी की ‘पद्मावत’ (1540 ई.) पर निर्भर मानते हुए इस प्रकरण और इन रचनाओं को कल्पित ठहरा दिया। प्रस्तुत विनिबंध इन रचनाओं को भारतीय ऐतिहासिक कथा काव्य की परंपरा के परिप्रेक्ष्य में रखकर इनके ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक महत्त्व पर विस्तार से विचार करता । ख़ास बात यह है कि इस विचार में बतौर साक्ष्य रचनाओं का मूल और हिंदी कथा रूपांतरण भी दिया गया है। इतिहास और साहित्य के अध्येता के रूप में पद्मिनी की प्रसंग में रुचि रखने वाले विद्वानों और सामान्य पाठकों के लिए यह विनिबन्ध सूचना और शोध दृष्टि प्रदान के लिए न केवल उपयोगी, बल्कि नेत्रोन्मीलक है। लेखक ने विवादास्पद विषय पर सम्यक् अध्ययन प्रस्तुत कर अकादमिक के साथ, सामाजिक उपयोगिता की दृष्टि से भी, महत्त्वपूर्ण कार्य किया है।
माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला के दौरे के दौरान 20 अप्रैल, 2023 को 'पुस्तक पद्मिनी: इतिहास और कथा-काव्य की जुगलबंदी' की प्रति भेंट करते हुए संस्थान के उपाध्यक्ष प्रो. शैलेंद्रराज मेहता ।
Padmini: Entwining History and Poetic- fiction
The Padmini-Ratansen episode has remained in public memory for centuries as an 'accepted truth'. From the 16th to the 19th century, there have been continuous narrative-poetic compositions in the desh (vernacular) languages on this episode and to some extent, these compositions are 'history' and to an extent, they are the narratives in their very nature and appeal. In this tradition some of the significant works available to date are 'Gora-Badal Kavitta' (before 1588 AD) by an unknown poet, 'Gora-Badal Padmini Chupai' by Hemratan (1588 AD), 'Padminisamio' by an unknown poet (1616 AD), Jatmal Nahar’s 'Gora- Badal Katha' (1623 AD), Labdhodaya’s 'Padmini Charitra Chaupai' (1649 AD), Dayaldas’ 'Ranaraso' (1668-1681 AD), Dalpati Vijay’s 'Khummanraso' (1715-1733 AD) and 'Chittor-Udaipur Patnama' (copy, 1870 AD) by the unknown composers. The Padmini episode remained the centre of a wide-ranging discourse, but in its investigation, the aforementioned compositions were completely neglected as compared to Islamic, Persian-Arabic historical sources. Most modern historians considered the episode as fictitious and these indigenous compositions were drawn from Malik Muhammad Jayasi's 'Padmavat' (1540 AD). They regarded the contemporary Islamic accounts of Allaudin Khilji to be more relevant and completely side-lined the indigenous sources. The present monograph discusses in detail the historical, cultural and literary magnitude of these compositions by preserving them from the perspective of the tradition of Indian historical narrative poetry. A unique feature of the present study is that besides including the texts from indigenous sources translations in Hindi have also been given. For scholars of history and literature, the present work furnishes useful information regarding the Padmini episode research vision but is also eye-opening. It is a ground-breaking academic research work from the point of view of social usefulness on the polemic subject.
समीक्षाएँ । Reviews
1. बनास जन । कृष्णमोहन श्रीमाली । इतिहास बोध का संवर्धन करने वाली विलक्ष कृति । अगस्त, 2023