राजपाल एंड संन्ज़, 1590, मदरसा रोड़, कश्मीरी गेट, दिल्ली-110006
कालजयी कवि और उनका काव्य
परिचय । Introduction
गागर में सागर की तरह इस पुस्तक शृंखला में हिन्दी के कालजयी कवियों की काव्य-रचनाओं में से श्रेष्ठ और प्रतिनिधि संकलन विस्तृत विवेचन के साथ प्रस्तुत है।अधिकांश मध्यकालीन संत-भक्तों और कवियों की की पहचान उपनिवेशकाल में बनी। उपनिवेशकालीन यूरोपीय अध्येताओं के इसमें निहित साम्राज्यवादी स्वार्थ थे। प्रजातीय श्रेष्ठता के बद्धमूल आग्रह के कारण भारतीय समाज और संस्कृति के संबंध के उनका नज़रिया अच्छा नहीं था, इसलिए इन साहित्यकारों की जो पहचान उस दौरान बनी वो आधी-अधूरी है। आरंभिक भारतीय भारतीय मनीषा भी कुछ हद तक इसी औपनिवेशक ज्ञान मीमांसा से प्रभावित थी, इसलिए इन पहचानों में कोई बड़ा रद्दोबदल नहीं हुआ। अब हमारा स्वतंत्रता का अनुभव वयस्क है और हमारी मनीषा भी धीरे-धीरे औपनिवेशिक ज्ञान मीमांसा से मुक्त हो रही है। यह शृंखला इन रचनाकारों की नयी पहचान और मूल्यांकन का प्रयास है। शृंखला में रचनाकारों की ऐसी रचानाएँ को तरजीह दी गयी, जो किसी आग्रह और स्वार्थ और उद्देश्य से अलग रचनाकार को उसकी समग्रता में प्रस्तुत करती हैं। रचनाकार और और उसकी रचनाओं परिचय भी इस तरह दिया गया है कि यह उनसे संबंधित अद्यतन शोध और विचार-विमर्श पर एकाग्र है ।चयन का संपादन डॉ. माधव हाड़ा ने किया है, जिनकी ख्याति भक्तिकाल के मर्मज्ञ के रूप में है। मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय, उदयपुर के पूर्व आचार्य एवं अध्यक्ष डॉ. हाड़ा भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला में फ़ैलो रहे हैं। संप्रति वे वहाँ की पत्रिका ‘चेतना’ के संपादक हैं।
गुरु नानक । ISBN : 9789393267351 | 2023 | ₹ 185
सिख धर्म की बुनियाद रखनेवाले गुरु नानक (1469-1539) मध्यकाल के महत्त्वपूर्ण संत और कवि हैं। उनकी वाणी में परमात्मा की एकता का विचार सर्वोपरि है और इसमें कविता अनायास है। ईश्वर की प्रकृति का जैसा वर्णन उन्होंने किया है, वैसा सूक्ष्म और विस्तृत वर्णन और किसी मध्यकालीन संत के यहाँ नहीं मिलता। मध्यकालीन संतों के कई मत-पंथ अस्तित्व में आए, लेकिन गुरु नानक का पंथ आज भी निरंतर और जीवंत है। प्रस्तुत चयन में गुरु नानक की श्रेष्ठ और प्रतिनिधि रचनाओं को प्रस्तुत किया गया है।
बुल्ले शाह | ISBN : 9789393267375 | 2023 | ₹ 185
पंजाब के सूफ़ी संत और कवि बुल्ले शाह (1680-1758) अपने असाधारण व्यक्तित्व, व्यवहार और गहरे आध्यात्मिक अनुभव से सम्पन्न वाणी के कारण हिन्दू, मुसलमान और सिखों में समान रूप से लोकप्रिय हैं। उनकी समस्त वाणी ईश्वर को पाने की कामना पर एकाग्र है और वे प्रेम को ही इसका एक मात्र साधन मानते हैं। बुल्ले शाह की वाणी पंजाबी में है और इसकी मस्ती, खुमारी, बेपरवाही पंजाब के लोक से आती है। शायद यही कारण है कि उनकी वाणी आज भी लोकप्रिय है और सिनेमा, संगीत, टीवी, इंटरनेट आदि में इसका बहुत प्रचलन है। प्रस्तुत चयन में बुल्ले शाह की रचनाओं में से श्रेष्ठ और प्रतिनिधि रचनाओं को प्रस्तुत किया गया है।
कबीर । ISBN : 9789393267191 | 2022| ₹ 185
कबीर (1398 -1515) भारतीय साहित्य की बड़ी विभूति हैं। उनके समान खरी-खरी कहने वाला कवि दूसरा नहीं हुआ। अपनी साखियों में पाखण्ड विरोध, ईश्वर निष्ठा और गुरु के प्रति समर्पण के चलते उनकी ऐसी लोक व्याप्ति हुई कि हिन्दी और हिन्दीतर जन सामान्य में भी आज तक उनका नाम लिया जाता है। उनका अध्यात्म अपने स्वाध्याय से अर्जित है तो खंडन का साहस भी उनके जीवनानुभवों का प्रमाण है। ‘जो घर फूंके आपना’ सरीखी बात कहने का साहस ही कबीर को कबीर बनाता है।
इस पुस्तक में कबीर के अनेक संग्रहों से तीन तरह की रचनाओं साखी, सबद और रमैणी से चुनकर उनके श्रेष्ठ काव्य का चयन प्रस्तुत किया गया है। इन कविताओं में कबीर के तेजस्वी व्यक्तित्व की झलक है तो उनकी ‘दरेरा’ देकर कहने वाली खरी-खरी बात का स्वाद भी।
रैदास । ISBN : 9789393267184 | 2022 | ₹ 185
रैदास (1410-1500) भक्ति आंदोलन के बड़े और महत्त्वपूर्ण संत कवि हैं। उनके लेखन की सबसे बड़ी विशेषता अपनी जातीय अस्मिता है। मध्यकाल के सीमित समझे जाने वाले सामाजिक परिवेश में अपनी हैसियत और जाति के प्रति ऐसा अकुंठ स्वाभिमान समूचे भक्ति साहित्य में उन्हें विशिष्ट बनाता है। अपनी निर्गुण भक्ति में रैदास जीव और ब्रह्म को एक मानते हैं। मनुष्य को ईश्वर भक्ति और समता के मार्ग से भटकाने वाली माया की निन्दा उनके यहाँ भी बार-बार मिलती है। प्रस्तुत चयन में रैदास के काव्य संसार से चुनकर पाँच खण्डों में उनकी श्रेष्ठ रचनाओं का चयन प्रस्तुत किया गया है। इन चयनित कविताओं में रैदास की जातीय अस्मिता की चेतना और भक्ति की अनन्यता इसे पठनीय और संग्रहणीय बनाने वाली।
मीरां । ISBN : 97881952975661 | 2021 | ₹ 185
प्रस्तुत चयन में मीरां (1498 -1546) के विशाल काव्य संग्रह से चुनकर प्रेम, भक्ति, संघर्ष और जीवन विषय पर पद प्रस्तुत किये गये हैं। इनमें मीरां के कविता के प्रतिनिधि रंगों को अपने सर्वोत्तम रूप में देखा-परखा जा सकता है। मीरां भक्तिकाल की सबसे प्रखर स्त्री-स्वर हैं और हिन्दी की पहली बड़ी कवयित्री के रूप में विख्यात हैं। उनकी कविता की भाषा अन्य संत-कवियों से भिन्न है और एक तरह से स्त्रियों की खास भाषा है जिसमें वह अपनी स्त्री लैंगिक और दैनंदिन जीवन की वस्तुओं को प्रतीकों के रूप में चुनती हैं। वे संसार-विरक्त स्त्री नहीं थीं, इसलिए उनकी अभिव्यक्ति और भाषा में लोक अत्यंत सघन और व्यापक है। उनकी कविता इतनी समावेशी, लचीली और उदार है कि सदियों से लोग इसे अपना मान कर इसमें अपनी भावना और कामना को जोड़ते आये हैं। मीरां के पद राजस्थानी, गुजराती और ब्रजभाषा में मिलते हैं।
सूरदास । ISBN : 9788195297559| 2021 | ₹ 185
सूरदास वात्सल्य रस के महाकवि माने जाते हैं। निःसंदेह वात्सल्य में उनसे बड़ा कवि कोई नहीं हुआ। भक्तिकाल के इस महान कवि द्वारा रचित सूरसागर में उनके कवित्व का वैभव मिलता है। भावों की सघनता के कारण पूरे भक्तिकाल में सूरदास की कविता के जैसा वैविध्य अन्यत्र दुर्लभ है। मध्यकाल में ब्रजभाषा जिस शिखर तक पहुँची, इसमें सूरदास की कविता का बड़ा योगदान है। जनश्रुतियों के अनुसार सूरदास जन्मांध थे किन्तु उनकी कविता का वैभव और जीवन सौंदर्य का विविधवर्णी चित्रण बताता है कि संभवतः वे जीवन के उत्तरार्ध में कभी नेत्रहीन हो गए हों। सूरदास अपनी कविताओं में भक्ति के विनय और सख्य रूपों के श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। प्रस्तुत चयन में सूरदास के काव्य संसार से विनय, वात्सल्य और वियोग में उनकी श्रेष्ठ रचनाओं का चयन प्रस्तुत किया गया है। इन कविताओं में सूरदास की काव्य कला की ऊँचाइयाँ इसे पठनीय और संग्रहणीय बनाने वाली हैं।
तुलसीदास । ISBN: 9788195297504 | 2021 | ₹ 185
रामायण को लोकभाषा में लिखकर साधारण जनमानस के हृदय में स्थान बनाने वाले तुलसीदास अपनी अद्भुत मेधा और काव्य प्रतिभा के लिए भक्तिकाल के सबसे बड़े कवि माने गए। उन्होंने परम्परा के दायरे में रहकर अपने समय और समाज के लिए उचित भक्ति पद्धति और दर्शन का विकास किया जिसमें समन्वय की अपार चेष्टा थी। अपने समय के विभिन्न मत-मतान्तरों के संघर्ष और प्रतिद्वंद्विता का उन्होंने अपनी रचनाओं में शमन और परिहार किया। प्रस्तुत चयन में तुलसीदास के यश का आधार मानी जाने वाली कृतियों - ‘रामचरितमानस’, ‘विनय पत्रिका’, ‘कवितावली’, ‘गीतावली’, ‘दोहावली’ और ‘बरवै रामायण’ से चुनकर उनके श्रेष्ठ काव्य को प्रस्तुत किया गया है। इनमें तुलसीदास की काव्य कला की विशेषताओं को देखा जा सकता है जहाँ कविता लोकप्रिय होकर जनसामान्य का कंठहार बनी और शास्त्र की कसौटी पर भी खरी उतरी।
अमीर खुसरो । ISBN : 9789393267351 | 2023 | ₹ 185
प्रस्तुत पुस्तक में अमीर ख़ुसरो (1262 -1324) के विशाल साहित्य भण्डार से चुनकर प्रतिनिधि पहेलियाँ, मुकरियाँ, निस्बतें, अनमेलियाँ, दो सुखन और गीत दिए गए हैं जो पाठकों को ख़ुसरो के साहित्य का आस्वाद दे सकेंगे। ख़ुसरो हिन्दी के प्रारम्भिक कवियों में माने जाते हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी खुसरो ने अरबी, फ़ारसी और तुर्की में भी विपुल मात्रा में लेखन किया। अपने को ‘हिन्दुस्तान की तूती’ कहने वाले ख़ुसरो पहले व्यक्ति थे जिन्होंने ’हिन्दवी’ का प्रयोग किया। भारतीय जनजीवन और लोक की गहरी समझ और उसके प्रति प्रेम ख़ुसरो के साहित्य की बड़ी विशेषता है, यही कारण है कि लंबा समय व्यतीत हो जाने पर भी उनकी रचनाएँ आज भी भारतीय जनमानस में लोकप्रिय हैं। सल्तनत काल के अनेक शासकों के राज्याश्रय में रहे ख़ुसरो उदार सोच रखते थे और उनमें धार्मिक संकीर्णता और कट्टरता बिलकुल नहीं थी।