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कालजयी कवि और उनका काव्य | Kaljayi Kavi Aur Unka Kavya

परिचय । Introduction

गागर में सागर की तरह इस पुस्तक शृंखला में हिन्दी के कालजयी कवियों की काव्य-रचनाओं  में से श्रेष्ठ और प्रतिनिधि संकलन विस्तृत विवेचन के साथ प्रस्तुत है।अधिकांश मध्यकालीन संत-भक्तों और कवियों की की पहचान उपनिवेशकाल में बनी। उपनिवेशकालीन यूरोपीय अध्येताओं के इसमें निहित साम्राज्यवादी स्वार्थ थे। प्रजातीय श्रेष्ठता के बद्धमूल आग्रह के कारण भारतीय समाज और संस्कृति के संबंध के उनका नज़रिया अच्छा नहीं था, इसलिए इन साहित्यकारों की जो पहचान उस दौरान बनी वो आधी-अधूरी है। आरंभिक भारतीय भारतीय मनीषा भी कुछ हद तक इसी औपनिवेशक ज्ञान मीमांसा से प्रभावित थी, इसलिए इन पहचानों में कोई बड़ा रद्दोबदल नहीं हुआ। अब हमारा स्वतंत्रता का अनुभव वयस्क है और हमारी मनीषा भी धीरे-धीरे औपनिवेशिक ज्ञान मीमांसा से मुक्त हो रही है। यह शृंखला इन रचनाकारों की नयी पहचान और मूल्यांकन का प्रयास है। शृंखला में रचनाकारों की ऐसी रचानाएँ को तरजीह दी गयी, जो किसी आग्रह और स्वार्थ और उद्देश्य से अलग रचनाकार को उसकी समग्रता में प्रस्तुत करती हैं। रचनाकार और और उसकी रचनाओं परिचय भी इस तरह दिया गया है कि यह उनसे संबंधित अद्यतन शोध और विचार-विमर्श पर एकाग्र है ।चयन का संपादन डॉ. माधव हाड़ा ने किया है, जिनकी ख्याति भक्तिकाल के मर्मज्ञ के रूप में है। मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय, उदयपुर के पूर्व आचार्य एवं अध्यक्ष डॉ. हाड़ा भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला में फ़ैलो रहे हैं। संप्रति वे वहाँ की पत्रिका ‘चेतना’ के संपादक हैं।

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लालन शाह फ़क़ीर । ISBN : 97893932679562| 2024 | ₹ 185

बाउल साधक और कवि लालन शाह फ़क़ीर (1774-1890 ई.) भारतीय भक्ति साहित्य  की अठारहवीं-उन्नीसवीं सदी के प्रमुख और लोकप्रिय संत हैं। भक्ति चेतना का भारत के विभिन्न क्षेत्रों में वहाँ की ख़ास प्रकार की ऐतिहासिक-सांस्कृतिक के ज़रूरतों के तहत अलग-अलग ढंग से पल्लवन और विस्तार हुआ। अविभाजित बंगाल में इसका पल्लवन बाउल साधना के रूप में था। बाउल मध्यकाल में विकसित ऐसी साधना थी, जिसमें मनुष्य शरीर में ही स्थित परम तत्त्व या ईश्वर की खोज का आग्रह सर्वोपरि था। बाउल मध्यकालीन अविभाजित बंगाल में प्रचलित बौद्ध सहजिया, वैष्णव सहजिया, नाथ-सूफ़ी आदि परंपराओं से आनेवाले निम्नवर्गीय जनसाधरण का समूह था, जो धीरे-धीरे एक संप्रदाय के रूप में अस्तित्व में आया। बाँग्ला जनसाधारण में इस संप्रदाय को लेकर कई धारणाएँ हैं, इनकी प्रतिवादी धारणाएँ है और कई तरह की चर्चाएँ हैं। यह संप्रदाय और इसकी साधना अभी तक भी बाँग्लाभाषी जनसाधरण के लिए ‘अनसुलझी पहेली' है। लालन फक़ीर के अध्येता सुधींद्र चक्रवर्ती ने इस मुश्किल का ज़िक्र किया है। उनके अनुसार “पिछले दो दशकों से बाउल संस्कृति की रहस्यमय अवधारणा की खोज में गाँव-गाँव भटकने के बाद यह समझ आ गया था कि बाउल धर्मशास्त्र की छिपी हुई मिट्टी और पानी को खोदना इतना आसान नहीं है।” इसकी गुह्य साधनाएँ और बर्तमानवादी अर्थात भौतिकवादी आचार-विचार की भद्र बाँग्ला समाज में सराहना और निंदा, दोनों हुईं। लालन फ़क़ीर इस साधना के उत्कर्ष के जीवंत रूप हैं।

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सहजोबाई । ISBN : 9789389373820 | 2024 | ₹ 185

सहजोबाई (1725-1805 ई.) मध्यकालीन भक्ति आंदोलन के अंतिम चरण की अल्पचर्चित, लेकिन बहुत महत्त्वपूर्ण संत-भक्त और कवयित्री हैं। भक्ति आंदोलन में स्त्री संत-भक्तों की संख्या ही बहुत सीमित है, इसलिए इनकी सूचियों में उनकी नाम गणना तो होती है, लेकिन हिंदी में उनके जीवन और काव्य के संबंध में जानकारियाँ नहीं के बराबर उपलब्ध हैं। सहजोबाई उच्च कोटि कवि और दार्शनिक नहीं हैं, उनकी वाणी में उनके यह सब होने का आडंबर भी नहीं है, लेकिन जिस सीधे, सरल और सहज ढंग से वे अपनी बात कहती हैं, वो उन्हें मध्यकालीन संत-भक्त कवियों में सबसे अलग और ख़ास बना देता है। सहजोबाई मध्यकालीन संत-भक्तों में अलग और ख़ास अपनी असाधारण और कुछ हद तक आश्चर्यकारी गुरु भक्ति के कारण भी है। भक्ति आंदोलन में गुरु का स्थान ईश्वर के समकक्ष मानने की तो सदियों से परंपरा है, लेकिन सहजोबाई ने उससे आगे जाकर गुरु को ईश्वर से बड़ा और गुरु के लिए ईश्वर को त्याज्य की कोटि में रख दिया। गुरु के संबंध में उनकी धारणा यह है कि ‘गुरु न तजूँ हरि को तज डारूँ” अर्थात् गुरु को नहीं छोड़ूँगी, भले ही इसके लिए ईश्वर को छोड़ना पड़े। यह एक तरह से अलौकिक ईश्वर के बरक्स मनुष्य की महिमा की स्वीकृति और प्रतिष्ठा है, जो भक्ति आंदोलन के और किसी संत-भक्त के यहाँ नहीं मिलतीं। सहजोबाई बहुत सामान्य और सरल हृदय की संत-भक्त स्त्री हैं। सादगी, सरलता और सहजता उनके जीवन और वाणी की बहुत मुखर और आकर्षक विशेषताएँ है। उनको ‘सादगी का सार’ कहा गया है। सहजोबाई की वाणी में दुर्लभ क़िस्म का सहज विश्वास है- उनके स्वर में कोई विचलन नहीं है, उसमें कोई द्वंद्व और दुविधा नहीं है और यह बहुत सीधा और साफ़ है। हिंदी की मध्यकालीन संत-भक्त कवयित्रियों में वे इस मायने में भी अलग और ख़ास हैं कि उनकी वाणी में कहीं भी उनके स्त्री होने का दैन्य और उसकी शिकायत नहीं है।

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जायसी । ISBN : 9789393267351 | 2023 | ₹ 185

मलिक मुहम्मद जायसी (1491-92 - 1575-76 ई.) हिंदी के विख्यात और लोकप्रिय सूफ़ी कवि हैं। उनकी असाधारण कवि प्रतिभा और प्रबंध काव्य कौशल ने जार्ज अब्राहम गियर्सन, रामचंद्र शुक्ल, वासुदेवशरण अग्रवाल, विजयदेवनारायण साही आदि कई विद्वानों को अपनी ओर आकृष्ट किया। मध्यकालीन अन्य संत-भक्त और सूफ़ी कवियों की तरह विद्वान् जायसी के जीवन और कविता को लेकर एक राय नहीं है। ख़ास बात यह है कि इस्लाम, सूफ़ी मत और फ़ारसी भाषा और साहित्य संबंधी अज्ञान या आधी-अधूरी जानकारियों के कारण जायसी के संबंध में कई भ्रांतियाँ हैं।  जायसी मुसलमान थे, लेकिन उन्हें भारतीय धर्म, दर्शन, अध्यात्म और देवी देवताओं का पर्याप्त ज्ञान था। उनकी जानकारियों को कुछ विद्वानों ने ‘सुश्रुत‘ की श्रेणी में रखा है, जो सही है। उनकी रचनाओं में जिस तरह से इनका निवेश है, उससे साफ़ लगता है कि ये लोक से होकर उनके पास आयी हैं। जायसी कथाकार और कवि भी असाधारण हैं- कथा-कविता उनके लिए ‘ओट’ है, लेकिन इसको वे डूबकर रचते हैं। जायसी का प्रबंध विधान मसनवी और भारतीय प्रबंध काव्य परम्परा से अलग, भारतीय इस्लामी-सूफ़ी शैली का है, जिसका विकास यहाँ के सूफ़ी कवियों ने किया। यह जायसी से पहले ही सुस्थापित था और यह एकाधिक सूफ़ी मुसलमान कवियों के हाथों मँझ भी चुका था। हिंदी में यहाँ पहली बार जायसी की अभी तक उपलब्ध सात रचनाओं-पद्मावत, कन्हावत, चित्ररेखा, अखरावट, अखरानामा, कहरानामा और मसलानामा के अंश एक साथ संकलित किए गए हैं।

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रहीम । ISBN : 978-9389373646 । 2023 | ₹ 185

अब्दुर्रहीम ख़ानेख़ाना (1556-1627 ई.) के संबंध में यह प्रचलित कथन पूरी तरह सही है कि- “एक बित्ते का कद और दिल में सौ गाँठ / एक मुट्ठी हड्डी और सौ शक़्लें।” उनका व्यक्तित्व असाधारणता की सीमा तक वैविध्य और विरोधाभासों का समूह है। अकबर ने उनको ईश्वर का दिया हुआ ‘अलभ्य पदार्थ’ कहा है। योद्धा वे इतने बड़े थे कि अबुल फ़ज़ल ने उन्हें ‘पुरूष सिंह’ की संज्ञा दी। कवि भी वे इस तरह के थे कि उनके समय में उनकी जीवनी लिखने वाले अब्दुल्बाक़ी निहावंदी ने उनके संबंध में लिखा कि “अकबर के दरबारी लोगों में जितनी अधिक काव्य रचना इन्होंने की, उतनी संभवतया और किसी ने नहीं की।” रहीम एकाधिक भाषाओं के भी जानकार थे। आईन-ए-अकबरी में उल्लेख है कि “ख़ानेख़ाना रहीम उपनाम से फ़ारसी, तुर्की, अरबी, संस्कृत और हिंदी में सप्रवाह लिखता था और अपने समय का मैसनास माना जाता था। दानी के रूप उनकी ख्याति ऐसी थी कि इस संबंध में कई मिथ और कथाएँ उस समय भारत में और यहाँ तक ईरान तक में प्रचलित थीं। वे कला और सौंदर्य के भी पारखी थे- इस संबंध में भी उनके कई क़िस्से चलन में हैं। रहीम सांसारिक थे- वे ठसक के साथ शान-ओ-शौकत से रहते थे। सांसारिकता का उनको ज्ञान था। भी कहा और लिखा, यह उल्लेख उनके जीवन संबंधित सभी वृत्तांतों में मिलता है। हिंदवी मुग़लकाल में अरबी, फ़ारसी, तुर्की और संस्कृत की ही तरह सम्मानित भाषा थी। रहीम की हिंदी कविताओं का यह संचयन लगभग पूर्ण है- इसमें उनकी अभी तक उपलब्ध केवल खेटकौतुकम्, द्वात्रिंशद्योगावली और गंगाष्टकम् को छोडकर सभी रचनाएँ आ गयी हैं।

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गुरु नानक । ISBN : 9789393267351 | 2023 | ₹ 185

सिख धर्म की बुनियाद रखनेवाले गुरु नानक (1469-1539) मध्यकाल के महत्त्वपूर्ण संत और कवि हैं। उनकी वाणी में परमात्मा की एकता का विचार सर्वोपरि है और इसमें कविता अनायास है। ईश्वर की प्रकृति का जैसा वर्णन उन्होंने किया है, वैसा सूक्ष्म और विस्तृत वर्णन और किसी मध्यकालीन संत के यहाँ नहीं मिलता। मध्यकालीन संतों के कई मत-पंथ अस्तित्व में आए, लेकिन गुरु नानक का पंथ आज भी निरंतर और जीवंत है। प्रस्तुत चयन में गुरु नानक की श्रेष्ठ और प्रतिनिधि रचनाओं को प्रस्तुत किया गया है।

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बुल्ले शाह | ISBN : 9789393267375 | 2023 | ₹ 185

पंजाब के सूफ़ी संत और कवि बुल्ले शाह (1680-1758) अपने असाधारण व्यक्तित्व, व्यवहार और गहरे आध्यात्मिक अनुभव से सम्पन्न वाणी के कारण हिन्दू, मुसलमान और सिखों में समान रूप से लोकप्रिय हैं। उनकी समस्त वाणी ईश्वर को पाने की कामना पर एकाग्र है और वे प्रेम को ही इसका एक मात्र साधन मानते हैं। बुल्ले शाह की वाणी पंजाबी में है और इसकी मस्ती, खुमारी, बेपरवाही पंजाब के लोक से आती है। शायद यही कारण है कि उनकी वाणी आज भी लोकप्रिय है और सिनेमा, संगीत, टीवी, इंटरनेट आदि में इसका बहुत प्रचलन है। प्रस्तुत चयन में बुल्ले शाह की रचनाओं में से श्रेष्ठ और प्रतिनिधि रचनाओं को प्रस्तुत किया गया है

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कबीर । ISBN : 9789393267191 | 2022| ₹ 185
कबीर (1398 -1515) भारतीय साहित्य की बड़ी विभूति हैं। उनके समान खरी-खरी कहने वाला कवि दूसरा नहीं हुआ। अपनी साखियों में पाखण्ड विरोध, ईश्वर निष्ठा और गुरु के प्रति समर्पण के चलते उनकी ऐसी लोक व्याप्ति हुई कि हिन्दी और हिन्दीतर जन सामान्य में भी आज तक उनका नाम लिया जाता है। उनका अध्यात्म अपने स्वाध्याय से अर्जित है तो खंडन का साहस भी उनके जीवनानुभवों का प्रमाण है। ‘जो घर फूंके आपना’ सरीखी बात कहने का साहस ही कबीर को कबीर बनाता है।
इस पुस्तक में कबीर के अनेक संग्रहों से तीन तरह की रचनाओं साखी, सबद और रमैणी से चुनकर उनके श्रेष्ठ काव्य का चयन प्रस्तुत किया गया है। इन कविताओं में कबीर के तेजस्वी व्यक्तित्व की झलक है तो उनकी ‘दरेरा’ देकर कहने वाली खरी-खरी बात का स्वाद भी।

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रैदास । ISBN : 9789393267184 | 2022 | ₹ 185

रैदास (1410-1500) भक्ति आंदोलन के बड़े और महत्त्वपूर्ण संत कवि हैं। उनके लेखन की सबसे बड़ी विशेषता अपनी जातीय अस्मिता है। मध्यकाल के सीमित समझे जाने वाले सामाजिक परिवेश में अपनी हैसियत और जाति के प्रति ऐसा अकुंठ स्वाभिमान समूचे भक्ति साहित्य में उन्हें विशिष्ट बनाता है। अपनी निर्गुण भक्ति में रैदास जीव और ब्रह्म को एक मानते हैं। मनुष्य को ईश्वर भक्ति और समता के मार्ग से भटकाने वाली माया की निन्दा उनके यहाँ भी बार-बार मिलती है। प्रस्तुत चयन में रैदास के काव्य संसार से चुनकर पाँच खण्डों में उनकी श्रेष्ठ रचनाओं का चयन प्रस्तुत किया गया है। इन चयनित कविताओं में रैदास की जातीय अस्मिता की चेतना और भक्ति की अनन्यता इसे पठनीय और संग्रहणीय बनाने वाली।

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अमीर खुसरो । ISBN : 9789393267351 | 2023 | ₹ 185

प्रस्तुत पुस्तक में अमीर ख़ुसरो (1262 -1324) के विशाल साहित्य भण्डार से चुनकर प्रतिनिधि पहेलियाँ, मुकरियाँ, निस्बतें, अनमेलियाँ, दो सुखन और गीत दिए गए हैं जो पाठकों को ख़ुसरो के साहित्य का आस्वाद दे सकेंगे। ख़ुसरो हिन्दी के प्रारम्भिक कवियों में माने जाते हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी खुसरो ने अरबी, फ़ारसी और तुर्की में भी विपुल मात्रा में लेखन किया। अपने को ‘हिन्दुस्तान की तूती’ कहने वाले ख़ुसरो पहले व्यक्ति थे जिन्होंने ’हिन्दवी’ का प्रयोग किया। भारतीय जनजीवन और लोक की गहरी समझ और उसके प्रति प्रेम ख़ुसरो के साहित्य की बड़ी विशेषता है, यही कारण है कि लंबा समय व्यतीत हो जाने पर भी उनकी रचनाएँ आज भी भारतीय जनमानस में लोकप्रिय हैं। सल्तनत काल के अनेक शासकों के राज्याश्रय में रहे ख़ुसरो उदार सोच रखते थे और उनमें धार्मिक संकीर्णता और कट्टरता बिलकुल नहीं थी।

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मीरां । ISBN : 97881952975661 | 2021 | ₹ 185

प्रस्तुत चयन में मीरां (1498 -1546) के विशाल काव्य संग्रह से चुनकर प्रेम, भक्ति, संघर्ष और जीवन विषय पर पद प्रस्तुत किये गये हैं। इनमें मीरां के कविता के प्रतिनिधि रंगों को अपने सर्वोत्तम रूप में देखा-परखा जा सकता है। मीरां भक्तिकाल की सबसे प्रखर स्त्री-स्वर हैं और हिन्दी की पहली बड़ी कवयित्री के रूप में विख्यात हैं। उनकी कविता की भाषा अन्य संत-कवियों से भिन्न है और एक तरह से स्त्रियों की खास भाषा है जिसमें वह अपनी स्त्री लैंगिक और दैनंदिन जीवन की वस्तुओं को प्रतीकों के रूप में चुनती हैं। वे संसार-विरक्त स्त्री नहीं थीं, इसलिए उनकी अभिव्यक्ति और भाषा में लोक अत्यंत सघन और व्यापक है। उनकी कविता इतनी समावेशी, लचीली और उदार है कि सदियों से लोग इसे अपना मान कर इसमें अपनी भावना और कामना को जोड़ते आये हैं। मीरां के पद राजस्थानी, गुजराती और ब्रजभाषा में मिलते हैं।

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सूरदास । ISBN : 9788195297559| 2021 | ₹ 185

सूरदास वात्सल्य रस के महाकवि माने जाते हैं। निःसंदेह वात्सल्य में उनसे बड़ा कवि कोई नहीं हुआ। भक्तिकाल के इस महान कवि द्वारा रचित सूरसागर में उनके कवित्व का वैभव मिलता है। भावों की सघनता के कारण पूरे भक्तिकाल में सूरदास की कविता के जैसा वैविध्य अन्यत्र दुर्लभ है। मध्यकाल में ब्रजभाषा जिस शिखर तक पहुँची, इसमें सूरदास की कविता का बड़ा योगदान है। जनश्रुतियों के अनुसार सूरदास जन्मांध थे किन्तु उनकी कविता का वैभव और जीवन सौंदर्य का विविधवर्णी चित्रण बताता है कि संभवतः वे जीवन के उत्तरार्ध में कभी नेत्रहीन हो गए हों। सूरदास अपनी कविताओं में भक्ति के विनय और सख्य रूपों के श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। प्रस्तुत चयन में सूरदास के काव्य संसार से विनय, वात्सल्य और वियोग में उनकी श्रेष्ठ रचनाओं का चयन प्रस्तुत किया गया है। इन कविताओं में सूरदास की काव्य कला की ऊँचाइयाँ इसे पठनीय और संग्रहणीय बनाने वाली हैं

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तुलसीदास । ISBN: 9788195297504 | 2021 | ₹ 185

रामायण को लोकभाषा में लिखकर साधारण जनमानस के हृदय में स्थान बनाने वाले तुलसीदास अपनी अद्भुत मेधा और काव्य प्रतिभा के लिए भक्तिकाल के सबसे बड़े कवि माने गए। उन्होंने परम्परा के दायरे में रहकर अपने समय और समाज के लिए उचित भक्ति पद्धति और दर्शन का विकास किया जिसमें समन्वय की अपार चेष्टा थी। अपने समय के विभिन्न मत-मतान्तरों के संघर्ष और प्रतिद्वंद्विता का उन्होंने अपनी रचनाओं में शमन और परिहार किया। प्रस्तुत चयन में तुलसीदास के यश का आधार मानी जाने वाली कृतियों - ‘रामचरितमानस’, ‘विनय पत्रिका’, ‘कवितावली’, ‘गीतावली’, ‘दोहावली’ और ‘बरवै रामायण’ से चुनकर उनके श्रेष्ठ काव्य को प्रस्तुत किया गया है। इनमें तुलसीदास की काव्य कला की विशेषताओं को देखा जा सकता है जहाँ कविता लोकप्रिय होकर जनसामान्य का कंठहार बनी और शास्त्र की कसौटी पर भी खरी उतरी।

समीक्षाएँ | Reviews

दीपक तेनगुरिया

किताबी बातें । सूरदास । लल्लन टॉप । 18 जुलाई, 2023

दीपक तेनगुरिया

किताबी बातें । गुरु नानक । लल्लन टॉप । 01 मई , 2023

दीपक तेनगुरिया

किताबी बातें । बुल्ले शाह । लल्लन टॉप । 28 मार्च, 2023

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सात्त्विक अनुभूति की अभिव्यक्ति | पुस्तक शृंखला कालजयी कवि और उनका काव्य । मधुमती, अगस्त, 2022 । ब्रजरतन जोशी 

माधव हाड़ा का संपादन केवल संकलन नहीं है, यह एक ज़िम्मेदार सर्जक का रचनात्मक उद्यम है, जो अपनी पूरीतन्मयता और मन से अपने विषय में रमा है। जो विषय में गहरे पैठकर पाठकों के ललिए नित्य ही कुछ नवीन और अद्वितीय लाता रहता है। इसी कारण उनका लेखन सुधी पाठकों, शोधार्थियों और आलोचकों के साथ ही साहित्य रसिकों में उत्साह का संचार तो करता ही है, साथ ठहरकर ठिठककर देशज परंपरा की आँख से वह सब दिखाता है, जिसे अक्सर हम साफ और स्पष्ट नहीं देख सकते।

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निर्ग़ुण कवियों की वाणियों का संचयन

यतींद्र मिश्र । किताबघर । दैनिक जागरण । 11 सितंबर, 2022  

दो दिन बाद हिंदी दिवस है। इस अवसर पर हिंदी भाषा की पूर्वज स्मृतियों को जिन बड़े संत कवियों, निर्गुणियों और विचारकों ने समृद्ध बनाया आज का कालम उनको समर्पित है। राजपाल एंड संज की महत्त्वपूर्ण योजना कालजयी कवि और उनका काव्य से कबीर और रैदास के चयन को उदाहरण स्वरूप यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है। इस शृंखला के संपादक भक्तिकाल के विद्वान माधव हाड़ा हैं। गौरतलब है कि इस सीरीज में अमीर खुसरो, मीरां, तुलसीदास, सूरदास पर चयन प्रकाशित हो चुके हैं ...    

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जनसाधारण के लिए कालजयी कवियों की प्रतिनिधि और लोकप्रिय कविताएँ और उनका विवेचनात्मक परिचय | पुस्तक शृंखला ‘कालजयी कवि और उनका काव्य | डीएनए हिंदी । 15.02.2022 | विशाल विक्रम सिंह

आधुनिक शिक्षा और संस्कार ने सामान्य पाठकों और विद्यार्थियों को अपनी मध्यकालीन समृद्ध साहित्यिक विरासत से दूर कर दिया है। राजपाल एंड सन्ज़ की मध्यकालीन साहित्य के अध्येता माधव हाड़ा के संपादन में प्रकाशित पुस्तक शृंखला ‘कालजयी कवि और उनका काव्य’ विद्यार्थियों और सामान्य पाठकों को अपनी परंपरा और विरासत से परिचित करवाएगी। शृंखला के पहले पहले चरण में चार कवियों- अमीर ख़ुसरो, मीरां, तुलसीदास और सूरदास की चयनित रचनाएँ इन कवियों के व्यक्तित्व और कृतित्व के परिचयात्मक भूमिका के साथ प्रकाशित की गयी हैं।

प्रभात रंजन

कालजयी कवि और उनका काव्य फेस बुक - जानकी पुल । 05 नवंबर, 2022 

तुलसीदास । साहित्य तक । जय प्रकाश पांडेय । 03 जून, 2022

आज शुक्रवार है और साहित्य तक के बुक कैफे के 'एक दिन, एक किताब' कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय ने डॉ. माधव हाड़ा के कविता संग्रह 'तुलसीदास कालजयी कवि और उनका काव्य' को शामिल किया है. डॉ. हाड़ा उदयपुर विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर और हिंन्दी विभाग के अध्यक्ष रहे. वह इन दिनों भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला में फ़ैलो हैं. डॉ. हाड़ा ने गागर में सागर की तरह इस पुस्तक में हिन्दी के कालजयी कवियों की विशाल काव्य-रचना में से श्रेष्ठतम और प्रतिनिधि काव्य का संकलन विस्तृत विवेचन के साथ प्रस्तुत है. रामायण को लोकभाषा में लिखकर साधारण जनमानस के हृदय में स्थान बनाने वाले तुलसीदास अपनी अद्भुत मेधा और काव्य प्रतिभा के लिए भक्तिकाल के सबसे बड़े कवि माने गए. उन्होंने परम्परा के दायरे में रहकर अपने समय और समाज के लिए उचित भक्ति पद्धति और दर्शन का विकास किया जिसमें समन्वय की अपार चेष्टा थी.  है.

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