कविता का पूरा दृश्य | Kavita Ka Poora Drishya
वाग्देवी प्रकाशन
सुगन निवास चंदन सागर, बीकानेर, 1992.
ISBN: 81-85127-38-7
परिचय | Introduction
अधिकांश शीर्षस्थ हिंदी आलोचना जब रचना के प्रामाणिक आस्वाद और परख की बजाय विचारधारात्मक शिविरों में बंटकर समकालीन रचाशीलता को अखबारी टिप्पणियों और सभाचातुरीपूर्ण वक्तव्यों में दाखिल-खारिज करने में लगी हो, माधव हाड़ा जैसे युवा आलोचक का कविता का पूरा दृश्य जैसा प्रयास विस्मयपूर्ण आश्वस्ति जगाता है।
माधव हाड़ा उन अल्पसंख्यक आलोचकों में हैं, जो किसी एक सौंदर्यशास्त्रीय प्रतिमान, समाजशास्त्रीय अवधारणा या राजनीतिक अनुकूलता की कसौटी के आधार पर कविता का मूल्यांकन नहीं करते, बल्कि अपने समय की काव्य संवेदना के वैविध्यपूर्ण संसार को अपनी समग्रता और विशिष्टता में एक साथ समझना-समझाना चाहते हैं। इसलिए जहां उनके अध्ययन में अकविता, युवा कविता जैसी अब अधिकांशतः निंदित प्रवृत्तियों या स्वयं प्रस्तावकों द्वारा खारिज कर दी गई सपाटबायानी जैसी अवधारणाओं को उनके ऐतिहासिक संदर्भ में जानने की कोशिश है, वहीं विचारधारात्मक आगहों से परे जाकर भी समकालीन कविता की सामाजिकता को उजागर करने साथ–साथ कविता में प्रकृति, प्रेम और अध्यात्म के पुनर्वास और शिल्पचेतना की वापसी की स्पष्ट पहचान और परख भी ।
अपने समय की कविता का प्रकृतिनिष्ठ मूल्यांकन करते हुए भी प्रत्येक रचनाकार की अपनी विशिष्टता और अवदान का अहसास भी उनके यहां बराबर उपस्थित रहता है। शायद इसी कारण माधव हाड़ा में रचनाकार के पास जाने के लिए आवश्यक विनय और सहानुभूति भी है और तटस्थता भी- और इसी के चलते उनकी आलोचना आस्वाद और मूल्यांकन का विरल समन्वय है। खुले मन से कविता के पास जाने के कारण उनकी भाषा आलोचना के विचारधारात्मक या अन्य प्रकार के ‘जार्गन’ से मुक्त है और इसीलिए पठनीय भी। कविता का पूरा दृश्य समकालीन हिंदी कविता का पुरोगामी और प्रामाणिक अध्ययन होने की वजह से भी पाठकों और अध्येताओं के लिए जरूरी किताब बन जाती है।