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तनी हुई रस्सी पर
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तनी हुई रस्सी पर
संघी प्रकाशन, उदयपुर-जयपुर
1987, मूल्य: रु, 35, पृ.100  
परिचय

 राजस्थान साहित्य अकादमी के देवराज उपाध्याय से पुरस्कार से सम्मानित यह आलोचना कृति लेखक की पहली रचना है। पुस्तक में आज की कविता की सही स्थिति उसके चरित्र को उकेरा गया है।

पुस्तक में सम्मिलित आलेख संतुलित आलोचना के साक्ष्य हैं और ये रचना का साथ कभी नहीं छोड़ते। इन लेखों को पढ़कर ऐसा नहीं लगता कि आलोचक अपनी सुविधा या व्यूहरचना  के लिए कविता को मनमाने ढंग से तोड़ रहा है। उसने अपने आग्रह थोपने के बजाय कवि के साथ सहयात्रा की है। जो कविता में चरितार्थ है उसी को संसार में गहरे पैठकर वह उसकी पड़ताल करता है और अंत में सांकेतिक शैली में निर्णय देता है।

लेखक ने जिस भाषा का प्रयोग किया है वह उसकी निजता और सौंदर्यशास्त्रीय अवधारणओं को व्यक्त करती है।  पुस्तक में हिंदी के कुछ कवियों - नंद चतुर्वेदी, ऋतुराज, विजेंद्र, नंदकिशोर आचार्य, मणि मधुकर,रणजीत आदि की कविता पर विचार किया गया है।

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