साक्षात्कार । INTERVIEWS
पद्मिनी प्रकरण-1 । माधव हाड़ा से विजयबहादुर सिंह की बातचीत
समालोचन । 6 जुलाई, 2023
मध्यकालीन साहित्य और उसके इतिहास पर आधारित आलोचक माधव हाड़ा की इधर कई पुस्तकें और महत्वपूर्ण आलेख प्रकाशित हुए हैं. ‘पद्मिनी : इतिहास और कथा-काव्य की जुगलबंदी’ उनका शोध कार्य है जिसे भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला ने हाल ही में प्रकाशित किया है. सर्वांग सुंदर स्त्री पुरुष-मनोजगत की ऐसी कामना रही है जिसने मृत्यु के पश्चात भी उसका पीछा नहीं छोड़ा है. क्या ‘पद्मिनी’ ऐसी ही कोई रति-कल्पना है. पद्मिनी की कथा का क्या कोई ऐतिहासिक आधार भी है? जैसे प्रश्नों पर प्रतिष्ठित आलोचक विजयबहादुर सिंह ने यह बातचीत माधव हाड़ा से की है. यह अकादमिक संवाद है इसलिए अवसरानुकूल तथ्य भी दिए गये हैं.
पद्मिनी प्रकरण-2 । माधव हाड़ा से विजयबहादुर सिंह की बातचीत
समालोचन । 10 सितंबर, 2023
मध्यकालीन साहित्य और उसके इतिहास पर आधारित आलोचक माधव हाड़ा की इधर कई पुस्तकें और महत्वपूर्ण आलेख प्रकाशित हुए हैं. ‘पद्मिनी : इतिहास और कथा-काव्य की जुगलबंदी’ उनका शोध कार्य है जिसे भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला ने हाल ही में प्रकाशित किया है. सर्वांग सुंदर स्त्री पुरुष-मनोजगत की ऐसी कामना रही है जिसने मृत्यु के पश्चात भी उसका पीछा नहीं छोड़ा है. क्या ‘पद्मिनी’ ऐसी ही कोई रति-कल्पना है. पद्मिनी की कथा का क्या कोई ऐतिहासिक आधार भी है? जैसे प्रश्नों पर प्रतिष्ठित आलोचक विजयबहादुर सिंह ने यह बातचीत माधव हाड़ा से की है. यह अकादमिक संवाद है इसलिए अवसरानुकूल तथ्य भी दिए गये हैं.साहित्य इतिहास में संवेदना का निवेश करता है. उसे समकालीन बनाने की उसकी कोशिश रहती है. इतिहास में रत्नसेन और पद्मावत के अस्तित्व को लेकर भले ही संशय हो. साहित्य ने उन्हें जीवित रखा है. इस पूरे प्रकरण को लेकर मध्यकालीन साहित्य के विद्वान माधव हाड़ा और वरिष्ठ आलोचक विजय बहादुर सिंह की बातचीत के इस दूसरे भाग में आप साहित्य और इतिहास की गझिन पारस्परिकता को देखेंगे. प्रस्तुत है.
परंपरा की जगह कभी-कभी खूँटे ले लेते हैं
माधव हाड़ा से पीयूष पुष्पम् का संवाद। पाठ। सं. देवांशु। जुलाई-सितंबर, 2024
हिंदी में जैसा चलन है सभी शुरुआत आधुनिक से ही करते हैं, मैंने भी वही किया, लेकिन बाद में महसूस होने लगा कि हमें अपने अतीत और विरासत को पहले समझना चाहिए। हिंदी भारतीय मध्यवर्गीय जनसाधारण की ख़ास बात यह है कि अतीत को लेकर उसमें गर्व का भाव तो बहुत है, गाहे-बगाहे वह इसका आग्रह भी बहुत उग्र प्रतिबद्धता के साथ करता है, लेकिन इसकी सार-सँभाल और पहचान की कोई सजगता उसमें नहीं है।वह अपने अतीत को अच्छी और पूरी तरह जानता ही नहीं है। स्वस्थ समाज की स्मृति हमेशा बहुत सघन और मुखर होती है। महात्मा गांधी, रबींद्रनाथ ठाकुर आदि इस बात को जानते थे, इसलिए उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन की एक प्रवृत्ति के रूप भारतीय साहित्य और ज्ञान के पुनरुत्थान की मुहिम शुरू की।
इतिहास को,लेकर हमारा नज़रिया अभी भी औपनिवेशिक है
माधव हाड़ा से असीम अग्रवाल की बातचीत। नया ज्ञानोदय । जुलाई-सितंबर, 2023
मीरां का प्रचारित जीवन, उसके असल जीवन से अलग और बाहर, गढ़ा हुआ है। गढ़ने का यह काम शताब्दियों तक निरंतर कई लोगों ने कई तरह से किया है और यह आज भी जारी है। मीरां के अपने जीवनकाल में ही यह काम शुरू हो गया था। उसके साहस और स्वेच्छाचार के इर्द-गिर्द लोक ने कई कहानियाँ गढ़ डाली थीं। बाद में धार्मिक आख्यानकारों ने अपने ढंग से इन कहानियों को नया रूप देकर लिपिबद्ध कर दिया। इन आरंभिक कहानियों में यथार्थ और सच्चाई के संकेत भी थे, लेकिन समय बीतने के साथ धीरे-धीरे इनकी चमक धुँधली पड़ती गई। मीरां के जीवन में प्रेम, रोमांस और रहस्य के तत्त्वों ने उपनिवेशकालीन यूरोपीय इतिहासकारों को भी आकृष्ट किया। उन्होंने उसके सम्बन्ध में प्रचारित प्रेम, रोमांस और रहस्य के तत्त्वों को कहानी का रूप देकर मनचाहा विस्तार दिया। ऐसा करने में उनके साम्राज्यवादी स्वार्थ भी थे। आज़ादी के बाद मीरां के संबंध में कई नई जानकारियाँ सामने आईं, लेकिन कुछ उसके विवाह आदि से संबंधित कुछ नई तथ्यात्मक जानकारियाँ जोड़ने के अलावा उसकी पारंपरिक छवि में कोई रद्दोबदल नहीं हुआ। पुस्तक 'वैदहिऔखदजाणै' के प्रकाशन केअवसर पर लेखक माधव हाड़ा का साक्षात्कार