top of page

साक्षात्कार | INTERVIEWS

सांचे-खांचे के बिना देखें मीरां

माधव हाड़ा ने अपनी आरंभिक पहचान कविता के आलोचक के रूप में बनाई थी। तनी हुई रस्सी पर और कविता का पूरा दृश्य जैसी किताबों से उन्होंने इसको पुष्ट भी किया। बाद में मीरां की कविता को समझने के क्रम वे इस पर शोध में संलग्न हुए। इस पर उनकी किताब आई पचरंग चोला पहर सखी री, जिसकी हिंदी समाज ने मुक्तकंठ से सराहना की। उन्होंने साहित्य अकादेमी के लिए मीरां रचना संचयन भी तैयार किया। उनके शोध और मीरां के जीवन पर केंद्रित बातचीत।

रोहितकुमार द्वारा लिया गया दैनिक जागरण, 4 दिसंबर,  2017 को प्रकाशित

हिंदी समाज अपने वर्तमान पर एकाग्र एवं उससे अभिभूत

उदयपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के आचार्य एवं अध्यक्ष माधव हाड़ा की शुरूआती पहचान  कविता के आलोचक की बनी थी। तनी हुई रस्सी पर और कविता का पूर दृश्य  जैसी आलोचना पुस्तकों के साथ उन्होंने राजस्थान के महत्त्वपूर्ण हिंदी कवियों पर निबंध लिखे थे। बीच मीडिया पर दो पुस्तकों के बाद उनकी दिलचस्पी मध्यकालीन साहित्य तथा प्राच्य विद्वानों में हुई। मीरां के जीवन पर गहन शोध और विश्लेषण पर आधारित उनकी पुस्तक चर्चा में रही है.. उनसे बातचीत के अंश

पल्लव द्वारा लिया गया राजस्थान पत्रिका, 25 दिसंबर, 2016 को प्रकाशित

मीरां लोक में बनती-बिगड़ती है।

मीरां पर अपनी शोधपरक पुस्तक पचरंग चोला पहन सखी री  के लिए आलोचक माधव हाड़ा इन दिनों चर्चा में हैं। उदयपुर के मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय में हिन्दी के आचार्य और विभागाध्यक्ष हाड़ा इससे पहले समकालीन कविता पर दो तथा मीडिया पर दो पुस्तकें लिख चुके हैं। उनसे मीरां के जीवन के सम्बन्ध मे बातचीत हुई। प्रस्तुत है मुख्य अंश-

गणपत तेली द्वारा लिया गया फिफ्थ फ्लोर और अक्षर पर्व में 03 नवंबर, 2015 को प्रकाशित

चेतना के उपनिवेशीकरण से मुक्त होना जरूरी है।

भक्तिकाल की प्रतिनिधि स्त्री कवयित्री मीरां का जीवन और कविता साहित्यकारों और विमर्शवादियों में उत्सुक्रता का विषय का विषय रही है। प्रो. माधव हाड़ा गत एक दशक से मीरां पर गंभीर शोध कर रहे हैं। उनकी पुस्तक पचरंग चोला पहर सखी री चर्चित रही है। उनसे उनकी पुस्तकऔर मीरां से संबंधित सवालों को लेकर पल्लव ने बातचीत की ।

पल्लव द्वारा लिया गया हरिभूमि में 06 जुलाई, 2015 को प्रकाशित

bottom of page