सौने काट न लागै | मीरां पद संचयन | Sone Kat na Lage
सौने काट न लागै । मीरां पद संचयन
सस्ता साहित्य मंडल प्रकाशन , नयी दिल्ली -11001
ISBN: 978-93-90872-90-9
प्रथम संस्करण 2021
मूल्य : पेपरबैक रु. 180 , सजिल्द : रु. 400
परिचय | Introduction
मीरां के पदों के कई संकलन हैं, उसके पद धार्मिक गुटकों में हैं और उसके पद-भजनों के कई प्रसिद्ध गायकों के ओडियो-वीडियो हैं। बावजूद इसके मीरां के पदों के इस संकलन की ज़रूरत है, क्योंकि मीरां की रचनाओं में जो ‘अलग’ और ‘ख़ास’ है, वो अक्सर इनमें छूट गया है। ये संकलन-गुटके और ओडियो-वीडियो किसी ख़ास आग्रह और ज़रूरत के तहत बने हैं, इसलिए इनमें मीरां की कविता के सभी रंग और छवियाँ शामिल नहीं हैं। मीरां की कविता इस तरह की नहीं है कि इसको किसी आग्रह या विश्वास तक सीमित किया जा सकता हो। उसमें वह सब वैविध्य है, जो जीवन में आकंठ डूबे-रंगे मनुष्य के सरोकारों में होता है। यहाँ ‘मूल’ और ‘प्रामाणिक’ का आग्रह नही है। यह नहीं होने से औपनिवेशक शिक्षा और संस्कारवाले विद्वानों को आपत्ति होगी, लेकिन यहाँ आग्रह उन सभी रचनाओं को सम्मान देने का है, जो सदियों तक लोक की स्मृति में जीवंत बनी रहीं। भारतीय जनसाधारण का स्वभाव है कि वह इस तरह की रचनाओं को ही जीता-बरतता है। उसके व्यवहार कथित ‘मूल ’का आग्रह नहीं है। यहाँ संकलित पद इसीलिए उन उपलब्ध सभी स्रोतों से भी लिए गए हैं, जो स्मृति पर निर्भर हैं। उनमें से भी ऐसे पदों को प्राथमिकता दी गई है, जिनमें मीरां की घटना संकुल जीवन यात्रा, मनुष्य अनुभव, जीवन संघर्ष और ख़ास भक्ति के संकेत मौजूद हैं। यह धारणा कुछ हद सही सही है कि मीरां की कविता में लोक की जोड़-बाकी बहुत है, लेकिन इस आधार पर ये रचनाएँ अप्रामाणिक नहीं हो जातीं, जैसा कि कुछ ‘आधुनिक’ विद्वान मनते हैं। मीरां की अपनी कविता स्मृति में लोक की निरंतर जोड़-बाकी के बावजूद बहुत कुछ बची रही है। केवल मीरां की कविता में ही ऐसा नही हुआ। अधिकांश भारतीय संत-भक्तों की कविता स्मृति निर्भर कविता है और यह अप्रामाणिक नहीं है। यहाँ उन स्रोतों को भी महत्त्व दिया गया है, जिनमें स्मृति को लिखित रूप में ढालने के प्रयास हुए हैं। उदयपुर के धोली बावड़ी स्थित रामद्वारा के अठारहवीं सदी के गुटकों की अधिकांश रचनाएँ यहाँ ली गई हैं। अन्य लिखित स्रोतों की भी अधिकांश रचनाएँ यहाँ सम्मिलित हैं। आशा है, मीरां की समावेशी और लचीली कविता को ध्यान में तैयार किया गया यह समावेशी संकलन पाठकों और शोधार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगा।
समीक्षाएँ | Reviews
मीरां के लोक का सशक्त दस्तावेज़ | मोहम्मद हुसैन डायर | शब्दांकन । 90.06.2022
समाज में फैले ज्ञान से व्यक्ति का परिचय उसको अपने लोक से प्राप्त होता है, फिर शिक्षा के रास्ते से होते हुए वह शोध तक आते-आते एक व्यवस्थित रूप ग्रहण करता हुआ दिखता है। कई विद्वानों के अनुसार यह इस स्तर पर परिपक्व होने के साथ-साथ मान्य भी होता है। मीरां के संदर्भ में भी कुछ ऐसी ही धारणा विद्वानों की है। ऐसी धारणाओं को माधव हाड़ा की संपादित पुस्तक ‘सौनें काट न लागैं’ नए आयाम देती है। सस्ता साहित्य मंडल प्रकाशन नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक कुल 158 पृष्ठ की है। प्रस्तुत पुस्तक में मीरां के कुल 360 पदों को शामिल किया गया है। इस संग्रह में उदयपुर के धोली बावड़ी स्थित रामद्वारा के 18वीं सदी के गुटके से अधिकांश पद लिए गए हैं। ठीक इसी तरह से महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश, गुजरात विद्या सभा जैसे स्थानों पर उपलब्ध लिखित स्रोतों से भी कई पद लिए गए हैं।