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कृति मूल्यांकन मानस का हंस

संपादन : राजपाल एंड सन्ज, दिल्ली, 1590 मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली - 110006

संस्करण : 2019, मूल्य :  रु. 225 , पृष्ठ : 176  ISBN : 9789386534804

 

परिचय

अमृतलाल नागर कहानीकार, नाटककार, संस्मरणकार और आलोचक भी थे, लेकिन उपन्यास उनकी रचनात्मक प्रतिभा और कौशल का ‘उचित क्षेत्र’ था। वे मूलतः क़िस्सागो थे और यह बात वे ख़ुद कहते भी थे। क़िस्सागोई का कथन विस्तार उनकी आदत में था। वे केवल कहते नहीं थे- वे विस्तार, बारीकी और विवरणों के साथ बनाकर कहते थे, इसलिए उनको सुविधा उपन्यास में ही होती थी। यह बात उन्होंने ख़ुद भी जान ली थी, इसलिए अपनी साहित्यिक यात्रा के अंतिम चरण में उन्होंने अपने को उपन्यासों पर एकाग्र कर लिया था। मानस का हंस उनकी साहित्यिक यात्रा के अंतिम चरण की रचना है ओर यह उनकी रचनात्मक प्रतिभा और कौशल का उत्कर्ष भी हैं। क़िस्सागोई का संस्कार और आदत उनमें पुरानी थी, लेकिन यहाँ तक आते-आते कई तरह की जोड़-बाकी के बाद, लगता है, उन्होंने इसको उपन्यास के अनुशासन में अच्छी तरह साध लिया था।

यह औपन्यासिक रचना अलग क़िस्म की है- इसमें रचने और गढ़ने की चुनौतियाँ पहले से ज़्यादा हैं। क़िस्से में से क़िस्सा और बात में से बात निकालकर कथा वितान बुन-गढ़ देने में महारत रखने वाले अमृतलाल नागर के रचनाकार के सामने यहाँ पहले से ज्ञात और विख्यात इतिहास, आख्यान और जनश्रुतियाँ हैं। ये उनकी रचनात्मक कल्पना के पंखों का बाँधने वाले खूँटों की तरह हैं, लेकिन अब इन सब के बीच उनके रचनाकार को उठने-बैठने का अभ्यास हो गया है। अब उनकी कल्पना पहले से मौजूद इतिहास, आख्यान आदि को कभी प्रस्थान, कभी सहारा और संकेत बनाकर निर्विघ्न कुलाँचें भरती है। अकसर रचना में इतिहास, आख्यान आदि का आधार या सहारा रचना के आलोक को धुँधला या मंद कर देता हैं, लेकिन इस रचना में इनकी मौज़ूदगी के बावजूद रचना का आलोक हमेशा मुख्य और निरंतर रहता है

© 2016 by Madhav Hada

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