पुतली ने आकाश चुराया । Putali Ne Akasha Churaya
राजपाल एंड संज़, 1590, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली, 2024, ISBN: 978-9389373679, मूल्य : रु. 325
परिचय । Introduction
पंक्ति ‘पुतली ने आकाश चुराया’ महादेवी वर्मा की एक कविता से उद्धृत है, जिसका आशय यह है कि हर समय और समाज की स्त्री का अपना अलग अस्तित्व, संसार और आकाश होता है। मध्यकालीन स्त्रियों का भी अपना आकाश है, जो उन्होंने ख़ुद बुना-रचा है। संकलित रचनाएँ इसी आकाश की रचनाएँ हैं। संकलन में भारतीय कथा-आख्यान परंपरा की आठ असाधारण और लगभग दुर्लभ मध्यकालीन रचनाओं का हिंदी कथा रूपांतर है। आठवीं से सत्रहवीं सदी के बीच रचे गए इन आख्यानों में स्त्रियाँ केंद्रीय चरित्र हैं।
ये स्त्रियाँ अपनी प्रकृति में एकरैखिक नहीं हैं- ये अलग-अलग प्रकृति की स्त्रियाँ हैं, जिनकी अपनी अलग आकांक्षाएँ, इच्छाएँ, संकल्प और कार्य-व्यवहार हैं। ये स्त्रियाँ सर्वथा निष्क्रिय नहीं हैं- ये कुछ हद तक सक्रिय इकाइयाँ हैं, जो खुलकर अपने सुख-दुःख, इच्छा, संकल्प और भावनाओं को व्यक्त करती हैं। अपने जीवन के निर्धारण में इनकी अपनी भूमिका निर्णायक है- ये अकसर अपने निर्णय ख़ुद लेती हैं और उनको अमल में लाने के लिए प्रयत्नशील भी रहती हैं। इन मध्यकालीन नायिकाओं को कम लोग जानते हैं। यह किताब इन नायिकाओं से पाठकों की जान-पहचान करवाएगी।
पुस्तक के लेखक माधव हाड़ा मध्यकालीन साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान् हैं। उन्होंने मध्यकालीन साहित्य को समकालीन साहित्यिक विमर्श के केद्र में लाने का महत्वपूर्ण कार्य किया है। उनके मीरां, पद्मिनी और मध्यकालीन संत-भक्तों संबंधी कार्य निरंतर चर्चा में रहे हैं। उनकी इस संबंध में पुस्तकें और शताधिक लेख प्रकाशित हैं।
समीक्षाएँ
देवीलाल गोदरा । सरस आख्यानों का शरबत : पुतली ने आकाश चुराया। बनास जन । अंक 78