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पद्मिनी: इतिहास और कथा-काव्य की जुगलबंदी
समीक्षालेख । बी एल भादानी । सामाजिकी । अक्टूबर-दिसंबर, 2025, अंक- 1 माधव हाड़ा द्वारा लिखित सद्य प्रकाशित कृति ‘पद्मिनी: इतिहास और कथा-काव्य की जुगलबंदी’ एक अद्वितीय शोधपूर्ण रचना है। उनकी यह रचना पद्मिनी-रत्नसेन पर उपलब्ध सम्पूर्ण ऐतिहासिक साहित्य (काव्य एवं गद्य) का विवेचनापूर्ण अध्ययन है, जो निश्चित ही उनकी गहन शोध दृष्टि का परिचायक है। इस ग्रन्थ में साहित्य एवं इतिहास में उनकी चहलकदमी अत्यंत दिलचस्प है एवं पाठक के मन में जिज्ञासा जागृत करने वाली है। उन्होंने इस अध्ययन को

Madhav Hada
Nov 3011 min read


भारतीय भक्ति-चेतना : पार्थिव चिंताएँ एवं सरोकार
तद्भव । अंक - 51 भारतीय भक्ति-चेतना में केवल लोकोत्तर सरोकार और चिंताएँ नहीं है, इसमें पार्थिव सरोकार और चिंता भी है। यह व्यापक सामाजिक-सांस्कृतिक और कुछ हद तक राजनीतिक चेतना भी है। भारतीय परंपरा में उपनिवेशकाल से पहले तक ‘धर्म’ शब्द बहुत व्यापक अर्थ में प्रयुक्त होता था। मध्यकाल और उससे पहले तक अधिकांश सामाजिक-राजनीतिक-गतिविधियाँ धर्म के दायरे के भीतर ही होती थीं। किसी भी सामाजिक-सांस्कृतिक और राजनीतिक गतिविधि की सामाजिक स्वीकार्यता लिए उसका धर्म के दायरे में होना ज़रूरी था।

Madhav Hada
Nov 623 min read


भारत में भक्ति की चेतना
'साहित्य तक’ पर श्री जयप्रकाश पांडेय से संवाद भारत में भक्ति की चेतना प्राग्वैदिककाल से निरंतर है। देश के विभिन्न क्षेत्रों की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक ज़रूरतों के तहत इसके कई रूप और प्रवृत्तियाँ रही हैं और सदियों से इनमें अंतःक्रियाएँ और रूपांतरण होता रहा है। भक्ति अगाध अनंत’ (राजपाल एंड संज़ एवं रज़ा न्यास का सह प्रकाशन) में इस सब्को समेटने का प्रयास किया गया है। यह सीमित अवधि का कोई ‘आंदोलन’ या ‘क्रांति’ नहीं है। यह केवल परलोक-व्यग्र चेतना भी नहीं है- मनुष्य की पार्थिव चिंताएँ

Madhav Hada
Nov 51 min read
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