सबके राम
वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, संस्करण 2023 । मूल्य रु. 2000 । ISBN 978-93-5518-553-0.
परिचय । INTRODUCTION
राम का चरित्र भारतीय जनसाधारण के चित्त में सदियों से जीवंत और निरंतर है। भारतीय जनसाधरण राम के चरित्र को अपने आचार-विचार में जीता-बरतता है। विश्व की किसी अन्य सभ्यता में राम जैसा कोई चरित्र नहीं है, जो इस तरह जनसाधरण के दैनंदिन जीवन का अभिन्न अंग हो गया हो। ख़ास बात यह है जब-जब समाज में मूल्यों का क्षरण होता, अराजकता बढती है, राम का यह चरित्र कभी वाल्मीकि के राम, तो कभी कृत्तिवास के राम, तो कभी तुलसी के राम के रूप में लोक-समाज के लिए प्रेरक और आदर्श की तरह आ खड़ा होता है। राम का मर्यादित आचरण, लोक की उनकी चिंता और इतर के प्रति उनका सम्मान का भाव आज भी हमारे आचार-विचार के लिए आदर्श की तरह हैं।
भारतीय मनीषा में इस चरित्र के कई रूप हैं- राम देवों के आराध्य हैं और वे ख़ुद भी देवों की आराधना करते हैं, वे आदर्श पुत्र, पति और भाई हैं, वे मित्र और परामर्शक हैं, वे उद्धारक हैं, वे प्रजापालक राजा आदि सब हैं। वे अपने सभी रूपों में जनसाधरण के आचार-विचार के आदर्श हैं। उनका चरित्र गतिशील है- यह इस तरह का है कि समय और समाज की ज़रूरतों के अनुसार ढल जाता है। भारतीय मनीषा इस चरित्र को सदियों से धारण कर रही है- यह उसको समृद्ध करती है और इस तरह ख़ुद भी समृद्ध होती है। यह चरित्र इस तरह का है कि सबको अपना लगता है- सबको इसमें अपने जीवन का आदर्श दिखायी पड़ता है। भारतीय समाज की उच्चादर्शों के प्रति सदियों की अविचलित निरंतरता में इस चरित्र की निर्णायक भूमिका है। यह समाज हर संकट को झेल लेता है, हर विपदा के बाद पुर्ननवा होकर आगे बढ़ जाता है, इसमें राम का आदर्श चरित्र हमेशा उसके लिए दिग्दर्शक का काम करता है।
संचयन ‘सबके राम’ प्रयोजनपूर्वक है। हम सबके अपने राम हैं और हम अपने राम को ही कुछ ज़्यादा अच्छी तरह जानते हैं। राम केवल हमारे राम तक सीमित नहीं हैं। उनके संबंधों का दायरा बहुत बड़ा है, भारतीय मनीषा ने उनके कई रूपों का सृजन किया है। यहाँ प्रयोजनपूर्वक आग्रह यह है कि हम अपने राम के साथ दूसरों के राम को जानें-पहचानें और समझें। यदि हम शिव के उपासक हैं और शिव के राम से हमारा अपनापा है, तो हम हनुमान के राम से भी अवगत हों। यदि भरत के राम से हमारा परिचय है, तो हम शबरी और सूर्पणखा के राम को भी अच्छी तरह जानें। राम के चरित्र के विविध रूपों का यह आकलन अलग-अलग रुचियों, पहचानों और सरोकारों के विद्वानों ने किया है, इसलिए यहाँ राम के रूपों का वैविध्य है। राम के विभिन्न रूपों से संबंधित इन सभी आलेखों में एक बात समान है वह यह धारणा और विश्वास कि राम का चरित्र विलक्षण है और यह सदियों से हमारे लिए आचार-विचार का मानक और आदर्श है।
राम का चरित्र भारतीय मनीषा अद्भुत सष्टि है। भारतीय मनीषा सदियों से इस चरित्र में नये-नये आयाम जोड़ती आयी है। वाल्मीकि ने राम के चरित्र को उच्चादर्शों से जोड़कर इसे आचरण के आदर्श पुरुष का पूज्य रूप दिया। बाद में भक्ति आंदोलन के दौरान तुलसी ने राम के चरित्र को भाषा में लिखा और यह इतना लोकप्रिय हुआ कि यह जनसाधारण के जीवन में सम्मिलित हो गया। भक्ति आंदोलन के अन्य संत-भक्तों कबीर और दादू की वाणी में राम का चरित्र बहुर मुखर रूप में मौजूद है। आधुनिककाल के आरंभ में कथाकार प्रेमचंद ने भी राम की कथा पर विचार किया।
वाल्मीकि, तुलसी, दादू और प्रेमचंद के राम के चरित्र की निर्मिति पर क्रमशः राधावल्लभ त्रिपाठी, विद्यानिवास मिश्र, विश्वनाथ त्रिपाठी और रामबक्ष ने निगाह डाली है। राम कथा में राम के साथ हमारे और कई पूज्य देव हैं। यहाँ संकलित सत्यनारायण व्यास का आलेख ‘शिव के राम’ भगवान शिव के नजरिये को राम को जानने का प्रयास है। हनुमान रामकथा के बहुत महत्त्वपूर्ण पात्र होने साथ भारतीय जनसाधारण के पूज्य देव भी हैं। मीता शर्मा ने अपने आलेख ‘हनुमान के राम’ में हनुमान की निगाह से राम को देखा-परखा है। राम अपनी कथा में निष्ठावान और समर्पित घर-परिवारी हैं। वे असाधरण पितृभक्त हैं। कथा में पिता दशरथ की दृष्टि में राम पर कृष्ण बिहारी पाठक ने अपने आलेख ‘दशरथ के राम’ में विचार किया है। इसी तरह कौशलेंद्रदास ने माता कोसल्या, विक्रमजीत ने पत्नी सीता, सूर्यप्रसाद दीक्षित और पूर्णचंद्र उपाध्याय ने भाई लक्ष्मण, नवीन नंदवाना ने भाई भरत और कृष्ण बिहारी पाठक ने माता कैकयी के दृष्टिकोण से राम के चरित्र पर निगाह डाली है। राम कथा में रावण, विभीषण और सुग्रीव बहुत ही महत्त्वपूर्ण चरित्र हैं। कथा के मोड़-पड़ावों में रावण राम का शत्रु और विभीषण और सुग्रीव उनके मित्र हैं। रावण, विभीषण और सुग्रीव के अपने अपने राम हैं, जिन पर क्रमशः प्रवीण पंड्या, जीवन सिंह और ब्रजरतन जोशी ने विचार किया है। राम के परिवार की स्त्रियों के अलावा राम कथा में शबरी, अहिल्या और सूर्पणखा नाम के तीन स्त्री चरित्र हैं। इन तीनों की निगाह में राम के चरित्र पर क्रमशः इंदुशेखर तत्पुरुष, अवंतिका शुक्ल ने विचार किया है। राम के वनवास के दौरान उनके संपर्क में कई चरित्र आए, जिनमें निषाद और जटायु प्रमुख हैं। रेणु व्यास ने इनमें निषाद की और मुरलीधर पालीवाल ने जटायु की निगाह से राम चरित्र को देखा-समझा है। राम कथा की व्याप्ति भारतीय आदिवासी समाज में भी है। हमारे आदिवासी या जनजाति समाज इसकी मौजूदगी पर अर्जुनदास केसरी और मोहन गुप्त ने विचार किया है। हिंदीतर भारतीय भाषाओं में भी राम का चरित्र प्रमुखता से वर्ण्य रहा है। अंत में कीर्तिशेष मनीषी विद्यानिवास मिश्र ने अपने आलेख ‘सबके राम’ में समस्त भारतीय जनसाधारण के जीवन में राम की व्याप्ति की पहचान और पड़ताल की है।