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सीढ़ियां चढ़ता मीडिया | Seedhyan Chadhata Media

आधार प्रकाशन, पंचकूला 2012, मूल्य: रु. 250, पृ. 140  ISBN: 978-81-7675-360-9

परिचय । Introduction

पिछले दिनों देश और दुनिया में इतना कुछ बदल गया है और बदल रहा है कि कि हममें से ज्यादातर लोग हक्क-बक्के हैं और यह नहीं समझ पा रहे हैं कि क्या अच्छा हो रहा है और क्या बुर। भूमंडलीकरण, नवसाम्राज्य्वाद, संचार क्रांति, मीडिया विस्फोट आदि ने हमारे चतुर्दिक सब कुछ बदल डाला है। इस पर एक सहज स्वाभाविक प्रतिक्रिया तो होती है अस्वीकार और नकार की। लेकिन समझदारी का तकाजा यह है कि इन चीजों का गहराई और तटस्थता के साथ वस्तुपरक मूल्यांकन किया जाए और उसके बाद ही निष्कर्षों पर पहुंचा जाए। इस किताब में ऐसा ही किया गया है।

 

यहां आम आलोचकवाली अस्वीकार और नकार की मुद्रा से सायास बचने और उपलब्ध तथ्यों और आंकड़ों का आधार लेकर मीडिया, समाज और साहित्य में आए बदलावों रेखांकित करने का प्रयास है। लेखक ऐसा करते हुए किसी पूर्व निर्धारित धारणा के परिधि में कदमताल करने के बजाय तथ्य प्रेरित परिणितियों पर निर्भर करता है। यहां चीजों को नकारात्मक के साथ उनके  सकारात्मक पहलू के साथ भी दिखाने की कोशिश है।

किताब में तकनीक और मीडिया के विस्तार,उनके अंतर्संबंधों, मीडिया के दो प्रमुख रूपों – इलेक्ट्रोनिक और मुद्रण, मुद्रण माध्यमों के स्थानीयकरण, समाचार पत्रों की बदलती भाषा, भारत में मुद्रण माध्यमों के विस्तार आदि पर मुक्तभाव से विचार किया गया है। यहां मीडिया पर विचार करते हुए लेखक उसके साहित्य, विशेषतः कविता और कहानी पर प्रभाव पर भी विचार करता है।

 

पुस्तक में एक आलेख है - मीडिया में मीरां का छवि निर्माण। समकालीनता से आक्रांत हिंदी विमर्श में यह कदाचित् पहली बार है कि किसी आलोचक ने इतनी गंभीरता से एक मध्यकालीन कवि के साथ  मीडिया के बर्ताव का विश्लेषण किया है। किताब में परिशिष्ट के रूप में सुविख्यात कथाकार स्वयं प्रकाश से लेखक बातचीत दी गई है, जो मीडिया, समकालीन समाज और काहनी पर केंद्रित है। इस सोने में सुहागा कहा जा सकता है। लेखक की ही तरह स्वयं प्रकाश भी चीजों को खुले मन से देखने के लिए जाने जाते हैं। यहां भी उन्होंने बहुत सारी नई स्थापनाएं दी हैं ।

© 2016 by Madhav Hada

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