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मीडिया, साहित्य और संस्कृति | Media, Sahitya aur Sansnkriti

श्याम प्रकाशन, जयपुर, 2006,

मूल्य : रु. 175 , पृ. 134  ISBN : 81-87247-95-9

परिचय | Introduction

इलेक्ट्रोनिक मीडिया का आक्रमण तथा वैश्वीकरण और उदारीकरण के शिकंजे का कसाव – जैसे दो पाटों के बीच आधुनिक मानव समाज एक नीच ट्रेजेडी को सहने के लिए अभिशप्त है। इलेक्ट्रोनिक मीडिया तथा संचार माध्यमों ने जहां मनुष्य को ज्ञान, सूचनाओं के नए क्षितिज दिए हैं, वहीं वैश्वीकरण के दबाव ने उपभोक्ता संस्कृति के प्रसार को प्रश्रय दिया है।

परंपरागत साधनों और मान्यताओं के जर्जर होकर बिखरने और नए संसाधनों के भौतिक प्रभाव के बढ़ने का विचित्र द्वंद्व आधुनिक मनुष्य को झेलना पड़  रहा है। प्रस्तुत पुस्तक संचार माध्यमों और तकनीक-प्रौद्योगिकी के मानव जीवन पर पड़ रहे प्रभावों – दुष्प्रभावों का गहन विश्लेषण करती है। नए वैज्ञानिक विकास ने मनुष्य को किस तरह संवेदनहीन बनाया है और समाज किस तरह मूल्यहीनता का शिकार हो रहा है, इन विडंबनाओं का तर्कसंगत आकलन इस पुस्तक के आलेख करते हैं। इस नयी प्रक्रिया ने मनुष्य का सब कुछ ध्वस्त ही नहीं किया है, प्रत्युत मानव मेधा ने मनुष्य को क्या–क्या सुविधाएं प्रदान की हैं, इस पर भी ये आलेख संवाद करते हैं।

नयी प्रौद्योगिकी ने हमारी जीवन शैली, शिक्षा, चिंतन और विलासप्रियता को बदलकर रख दिया है। यह बदलाव मनुष्य के लिए मंगलकारी हैं, तो इसने मनुष्य का बहुत कुछ नष्ट भी किया है। परिवार और समाज की अवधारणा को बदल दिया है तथा उपभोक्तावाद के असर ने हमारी सांस्कृतिक चेतना को ठूंट बना दिया है। ये आलेख इन सभी खतरों की ओर पाठक का ध्यान आकृष्ट करते है तथा उसे इन खतरों से बचने का मार्ग भी बताते हैं। आधुनिक जीवन की विसंगतियों और विडंबनाओं को समझने और उंनसे बचते हुए नये मानवीय समाज के निर्माण के तरीकों को आत्मसात करने के लिए यह एक जरूरी पुस्तक है।

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