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कोई निंदौ, कोई बिंदौ
मीराँ को जानने-समझने के दौरान के कुछ संकल्प और दुविधाएँ मीरां की कविता की एक पंक्ति है- कोई निंदौ कोई बिंदौ, मैं तो चलूंगी चाल अपूठी।...

Madhav Hada
Oct 30, 20249 min read


परंपरा की जगह कभी-कभी खूँटे ले लेते हैं
माधव हाड़ा से पीयूष पुष्पम् का संवाद पाठ। सं. देवांशु। जुलाई-सितंबर, 2024 प्रश्न: आपने शुरुआत तो आधुनिक कविता की आलोचन से की थी। अब आपने...

Madhav Hada
Aug 21, 202422 min read


या भव में मैं बहु दुख पायो- मीरां की यायावरी
कथादेश । यायावर स्त्री । मार्च-अप्रैल, 2024 “सगो सनेही मेरो न कोई, बैरी सकल जहान।” यह पंक्ति निरंतर असुरक्षा और निराश्रय के कारण...

Madhav Hada
Apr 25, 202412 min read
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